Wednesday, October 14, 2020

 स्वागतम , साहित्यपुरीमे । आइए शुरू कयल ई ब्लाैग । 
 बस अहिना । साेँचै छी जे मूख्यतः मैथिलीमे आ आन आवश्कयता अनुसारके भाषामे लिखब । 

किछु साेँचल नइँ अइ । दुनियाँ-जहान, लाेक-वेद, ओकर पीडा, मुक्तिचेतना, स्वप्न, संघर्ष आ ओकर खुशीके तात्कालिकता आ सम्भावित लक्ष्यके बात करब । नाम त एकर हम रखने छी साहित्यपुरी । मुदा साहित्य हमरालेल अइछ दुनियाँ देखबाक झराेखा । एहि झराेखा स हम संसारके जटिलता आ एहि दुनियाँमे रह' मानवकेे ओझरायल सामाजिकता, द्वन्द आ पक्षधरताके जागतिक कथा आ गीत कहब आ कथब । तात्पर्य जे साहित्यसंगे ओकर ऐतिहासिकता, साँस्कृतिकता, दार्शनिकता आ ओकर  विविध आयामक चर्चा करब । 

काेनाे कलावादी जका हमरालेल साहित्य दुनियाँके वा काेनाे अलाैकिकताके रूपपक्षक वर्णन वा अन्तरजगतके सुखानुभूति नइँ अइछ । हमरालेल साहित्यकाेनाे प्रत्ययवादी प्रवृत्ति सेहाे नइँ अइछ । हमरालेल साहित्य साैद्देश्यपूर्ण सर्जनात्मक प्रक्रिया अइछ, जे अइ संसारके मानवीय सुन्दरताके विरूप बनाब'बलाके विरूद्ध ठाढ हाेइत अइछ आ एकरा सुन्दर आ रह' याेग्य बनाब' श्रमके पक्षमे दृढतापूर्वक ठाढ हाेइत ।

हमरालेल  सुन्दरता मानवीय सर्जना, सर्जना प्रक्रिया आ एकरा पक्षमे लागलसबके पक्षमेके पक्षधरता अइछ । अही स त संसार मानवीय, रह' जाेग आ सुन्दर अइछ । एकरा अहाँ सत्यम, िशवम्, सुन्दरम् मे अभिव्यक्त क' सकैछी - सत्य जे कल्याणकारी अइ, ओहे सुन्दर अइ । फेर अहाँ वैदिक वाक्यके देखि हमरा अध्यात्मवादी नइँ बुझी । हमरा काेनाे अलाैकिकतापर विश्वास नइँ अइ । ओना अलाैकिकता सेहाे मानवीकृत अइछ । एकर कारण मानवीय अज्ञानता आ राज्यसत्ता आ एकर आश्रित पुराेहित वर्गक सृजित भ्रम मात्र अइ । ई बात ओ नइँ बुइझ सकैय जे अपन सम्पूर्ण चिन्तनके कानाे अलाैकिकता अर्थात् इश्वरके समर्पित क' देने अइछ । आ एकरा विरूद्ध किछु सून' नइँ चाहैत अइछ आ वैदिक वाङमय, आ महाकाव्यसबके अपने नइँ पढैत अइछ आ द्रव्यपिशाची पाैराेहित्य व्याख्याकारसबके भ्रमपूर्ण सतही व्याख्यासब स भ्रमित हाेइत अइछ । ओहाेसब जाैँ अपने ओहि ग्रन्थसबके पढय त सत्यके बुइछ सकैत अइछ । 
 सामान्यतः कही त हमरालेल एहि संसारके सुन्दर बनयबाकलेल कयल जायबला प्रयत्नसब, एहि स जन्मल खुशी, पीडा, आक्राेश आ एकर यथार्थवादी स्वप्न जे मानवीय सामूहिकतामे अभिव्यक्त हाेइत अइछ, तकर प्रतिबद्ध वर्णन अइछ । माध्यम कथा, कविता, गीत, निबन्ध, समालाेचना साहित्यिक विधासब अइ ।

संक्षेपमे कही त साहित्यपुरीमे अहाँ हमरासंगे समाजवादी यथार्थवादी साहित्यिक यात्रा क' सकैछी । किछु गाेटे समाजवादी यथार्थवादी नामे स नाँक भाैँ घाेकचाब' लगै छैथ । हुनका लगै छैन जे साहित्यक ई दृष्टिकाेण पार्थिव जगतके मात्र बात करैत अइछ, तयँ इ अधूरा अइछ । मुदा ई ओहि कल्पित लाेकक बात सेहाे करैत अइछ आ  तथ्यपूर्ण तार्किकताक संग कहैत अइछ जे जकरा अहाँ अलाैकिक कहैछी ओ भ्रममात्र अइछ, आ जकरा अहाँ अन्तरजगत वा आत्मा कहैछी ओ अही भाैतिक जगतक अनुभूतिजन्य प्रतिबिन्बन अइ । वास्तविकता बस इहे भाैतिक जगत आ एकरालेल मानवीय श्रम अइछ । एहि जगतके सुन्दर आ सब तरहक शाेषण स मुक्त रहबाक याेग्य बनाैनाइए जीवन आ जीवन कर्मक सारांश अइछ । 

आई एतबे । 

 स्वागतम , साहित्यपुरीमे । आइए शुरू कयल ई ब्लाैग ।   बस अहिना । साेँचै छी जे मूख्यतः मैथिलीमे आ आन आवश्कयता अनुसारके भाषामे लिखब ।  किछु साे...